۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
मुस्तफ़ा

हौज़ा /  लखनऊ: इमामबाड़ा मीरन साहब मरहूम मुफ़्ती गंज का ख़दीमी अशरा-ए-मजालिस शब में ठीक ९ बजे मुनअख़िद हो रहा है, जिसे मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान अदीबुल हिंदी ख़िताब फ़रमा रहे हैं|

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोट के अनुसार,  अशरा-ए-मजालिस की सातवीं मजलिस में हज़रत क़ासिम अलैहिस्सलाम के फ़ज़ायल बयान करते हुए मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान ने फ़रमाया: शहीद-ए-करबला हज़रत क़ासिम अलैहिस्सलाम रसूल अल्लाह (सल्लाहु अलैहे वा आलेहि वसल्लम) के सिब्ते अकबर इमाम हसन अलैहिस्सलाम के फ़रज़न्द हैं, रोज़-ए-आशूरा आपने मैदान-ए-करबला में अपने बाबा इमाम हसन अलैहिस्सलाम की नियाबत की और हैदरी शुजाआत के वोह जौहर दिखाए के फ़ौज-ए-अशख़िया के क़दम उखड़ गये और जिहाद करते-करते नुसरते दीन में शहीद हो गये|

मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान ने क़ुरानी आयात को ज़िक्र करते हुए बयान किया के सच्चे मौत से नहीं घबराते बल्कि मौत की तमन्ना करते हैं, सिद्दीक़-ए-अकबर अमीरूल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: ख़ुदा की क़सम! अबु तालिब का बेटा मौत से उतना ही मानूस है  जितना बच्चा अपनी मां के सीने से मानूस होता है, " सिद्दीक़-ए-अकबर इमाम अली अलैहिस्सलाम के फ़रज़न्द इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: अगर मेरे क़त्ल के बग़ैर दीन का क़याम मुमकिन नहीं है तो ऐ तलवारों! आओ और मुझे क़त्ल करो"!
जनाबे क़ासिम अलैहिस्सलाम उन्हीं सिद्दीक़-ए-अकबर के पोते और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महबूब भतीजे थे के जब मौला ने आपसे मौत के सिलसिले में सवाल किया तो फ़रमाया: "मेरे नज़दीक मौत शहद से ज़्यादा शीरीं है"!  बेशक जनाबे क़ासिम अलैहिस्सलाम तमाम इनसानों ख़ुसूसन जवानों के लिये बेहतरीन नमूना-ए-अमल हैं लिहाज़ा हमें उनकी पैरवी करनी चाहिये|

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